लंपट पत्रकारों की कहानी एक पत्रकार की जुबानी
लंबे समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में रहे निराला बिदेसिया ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से पत्रकारिता के क्षेत्र में हो रहे गिरावट पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने अपने एक फेसबुक पोस्ट में इसकी चर्चा की है. उनके इस पोस्ट को काफी शेयर किया जा रहा है.
उन्होंने अपने पोस्ट पर अपने एक इलाके के भ्रमण की चर्चा की है. यहां जानिये फेसबुक पोस्ट पर उन्होंने क्या लिखा है…!
लंबे समय बाद एक इलाके में गया. कोविड के बाद पहली बार. वहां अक्सर आना जाना होता है. परिचित भी अनेक हैं. शाम को गप्पबाजी की बैठकी हुई. बात निकली. बताया गया, पिछले छह माह में छह नये पत्रकार बने हैं उस इलाके में. उन छह में से तीन के बारे में डिटेल बताया गया.
- एक दारू सप्लाई के चेन से जुड़ा हुआ था. दिक्कत हो रही थी. 770 रुपये का बुम माइक और 500 रुपये का लोगो बनवाकर लाया. अब पत्रकार है.
- दूसरा की पत्नी सरकारी स्कूल में शिक्षिका है. कांट्रैक्ट पर. पत्नी को रोजाना स्कूल जाना पड़ता था. स्कूल न जाने पर हेडमास्टर से लेकर ब्लॉक एजूकेशन आफिसर तक किचकिच करते थे. जिला शिक्षा अधीक्षक या डीएम साहब के पास शिकायत भेजने की धमकी देते थे. पति बुम माइक खरीदकर लाया. लोगो बनवाया. पत्रकार बन गया. अब सब कंट्रोल में है. बायें,दायें बतियाने पर पत्रकार बना पति दूसरे स्कूल में जाता है. मोबाइल से वीडियो शूट कर चिल्लाते हुए बताता है, यह देखिए दुर्दशा. अधिकारियों की मिलीभगत से कैसे चल रहे हैं स्कूल. भ्रष्टाचार का अड्डा बन गये हैं सरकारी स्कूल.
- तीसरे ने पुरानी कार खरीदी थी. 20 साल से ज्यादा पुरानी कार. उसकी बाइक भी 20 साल से ज्यादा पुरानी हो चली थी. कभी—कभी बाइक या वाहन की चेकिंग में बहुते परेशान करते थे पुलिसवाले. वह बुम माइक खरीदकर लाया. एक पिट्ठू बैग खरीदा. उसमें माइक,लोगो रखा. कार और बाइक, दोनों के आगे प्रेस नहीं बल्कि आज के नये चलन के अनुसार मीडिया लिखवा दिया. अब वह सरपट चलता है. कहीं कोई रोकटोक नहीं. लगे हाथ उसने एक और नया काम शुरू कर दिया है. सड़क किनारे के पेंड़ों को जंगल विभाग और स्थानीय थाना से सेटिंग कर टिंबरवालों के हाथों सौदा तय कर आधी रात को कटवाने का काम भी शुरू किया है. लोग बता रहे थे कि बढ़ियां कमाई हो रही है.
बाकि के तीन पत्रकार एक ही साथ चलते हैं. साझा रूप से एक ही गाड़ी पर. उनका काम भोजपुरी का जहां दुगोला प्रोग्राम हो, वहां ट्राइपॉड पर अपना मोबाइल लगाकर कार्यक्रम की रिकार्डिंग कर चैनल पर लगाना है. बीच बीच में कलाकार का इंटरव्यू भी कर लेना है. जिस दिन कुछ नहीं है. रूखारूखी,सुखासुखी है, उस दिन घर पर ही बैठकर एक वीडियो बनाकर डाल देना है भोजपुरी पर.
इस पोस्ट के साथ उन्होंने लिखा है..यह सिर्फ एक इलाके की सूचना है. लेकिन इसका मतलब कतई नहीं कि यूट्यूबर या सोशल मीडिया में पत्रकारिता नहीं हो रही. एक से एक पत्रकार और संस्थान बहुत सार्थक काम कर रहे हैं. उनका सरोकार गहरा है. उनकी खबरों का असर व्यापक है.