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सीरीज 5: ‘यादों का इडियट बॉक्स’ की वह आवाज जो धीरे धीरे दिलों में उतरती चली गयी

आइआइएमसी से पढ़े इस पत्रकार ने गांव कनेक्शन और कई शो से पायी मकबूलियत

साल 2005 में बिग एफएम 92.7 पर एक आवाज सुनने को मिली थी. यादों का इडियट बॉक्स नामक कार्यक्रम से ये आवाज लोगों के दिल की धड़कन बन गयी. कई सालों तक चलने वाले इस कार्यक्रम को जब फिर से लॉन्च किया गया तो इस आवाज के चाहने वालों में बेइतंहा खुशी थी.

इस किस्सागो की कहानियों का इंतजार लोगों को आज भी रहता है. इस आवाज के पीछे का चेहरा एक पत्रकार है, संपादक है, लेखक भी हैं जिसने टाइगर जिंदा है और एक था टाइगर जैसे फिल्मों की पटकथाएं लिखीं..और इस चेहरे को दुनिया नीलेश मिश्रा के नाम से जानती है.

नीलेश मिश्रा का नाम आज हर किसी की जुबां पर है. रेडियो पर उनका किस्सागोई का अंदाज एकदम जुदा होने के कारण वे लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं.

नीलेश का जन्म पांच मई 1973 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था. उन्होंने अपनी ​स्कूली शिक्षा नैनीताल के ही संत जोसेफ कॉलेज और लखनउ के मांटफोर्ट इंटर कॉलेज से किया. इसके बाद नैनीताल के कुमांउ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कॉम्यूनिकेशन, दिल्ली से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन किया.

नीलेश मिश्रा पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान निधि राजदान से मिले. शादी के दो साल के बाद दोनों ने आपसी सहमति से ​डाइवोर्स लिया. इसके बाद नीलेश ने यामिनी मि​श्रा से दूसरी शादी की.

नीलेश मिश्रा गांव कनेक्शन के को—फाउंडर भी हैं. गांव कनेक्शन को पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं. गांव कनेक्शन की शुरूआत दो दिसंबर 2012 को हुई थी. उत्तरप्रदेश के एक गांव से गांव के लोगों तक गांव की खबरों को पहुंचाने के लिए इसको आरंभ किया गया था.

डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी पत्रकारिता को लेकर गांव कनेक्शन ने वाहवाही बटोरी. देश विदेश की कई मीडिया संस्थानों ने इसके काम की प्रशंसा किया. कई अवार्ड जीते और पूरे देश में इसकी चर्चा होने लगी. यह सब नीलेश मिश्रा के पत्रकारिता को लेकर दूरदृष्टि के कारण संभव हो सका.

वैसे उनकी लोकप्रियता एक रेडियो जॉकी के रूप में 92.7 बिग एफएम से बढ़ी. रेडियो पर उनका कार्यक्रम यादों का इडियट बॉक्स विद नीलेश मिश्रा काफी मशहूर हुआ. एक किस्सागो के रूप में वह लोगों को बांधना बखूबी जानते हैं.

नीलेश ना सिर्फ एक पत्रकार के रूप में नजर आये बल्कि उनकी रचनात्मकता बॉलीवुड तक पहुंची. एक गीतकार जो उनके अंदर मौजूद था वह भी जिस्म, कृष्णा कॉटेज, रोग जैसी फिल्मों के माध्यम से सामने आया. इन हिंदी फिल्मों के लिए उन्होंने कई शानदार गाने लिखें जो आज भी लोगों की पसंद बनी हुई है.

इसके अलावा उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं. इनमें नीलेश मिश्रा का याद शहर, द आइसी 814 हाईजैक, एंड ऑफ द लाइन ,द टेल ऑफ द नेपाली रॉयल मर्डर्स और द एब्सेंट स्टेट नामक किताबें लिखीं. साथ ही लाइफ स्टोरी नामक किताब का संपादन किया.

एक पत्रकार के रूप में उन्होंने करीबी बीस सालों तक दक्षिण एशिया के विभिन्न हिस्सों में जाकर संघर्ष और उग्रवाद जैसे विषयों पर जबरदस्त रिपोर्टिंग की. कश्मीर के संघर्ष और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर विद्रोह और उसके असर का बारीकी से अध्ययन किया.

अपनी पत्रकारिता के लिए उन्हें रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने यूट्यूब् पर द स्लो इंटरव्यू शो भी किया जिसे काफी मकबूलियत मिली.

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